Tuesday 17 April 2012

ये कैसी आस्था ??


भारत प्रारंभ से ही आस्था का केन्द्र रहा है। यही एक मात्र ऐसा देष है जहां करोड़ों की संख्या में देवी-देवता पूजे जाते हैं। देवी देवताओं के साथ ही यहां संत महात्माओं की भी कमी नहीं है। यहां कुछ ऐसे भी संत महात्मा हुए हैं जिन्होंने अपनी सादगी और चामत्कारिक गुणों से न केवल संसार को अचंभित किया बल्कि आमजन को सुखी जीवन जीने की सही राह भी बतलाई। वक्त बदला और संत महात्माओं का चोला भी। चोला बदलने से तात्पर्य उन संत महात्माओं से है जिन्होंने न केवल लोगों की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया बल्कि अपने लिए अथाह संपत्ती भी जमा की। जब तक ये जीवित रहे, दुनिया को भ्रम में रखा लेकिन इनकी मृत्यु के बाद जब इनका सच सामने आये तो लोग खुद को ठगे से महसूस करने लगे। इसके अलावा और कर भी क्या सकते हैं ?
यहां के लोग किसी पर भी बहुत जल्द विश्वास कर लेते हैं। विश्वास की सीमा तब हद पार कर जाती है जब पढ़ा लिखा बुद्धीजीवी तबका भी आधुनिक बाबाओं की जय जयकार करने लग जाता है। यही कारण है कि आये दिन बाबागिरी के नाम पर ठगी करने वालों का भांड़ाफोड़ होने के बावजूद भी बाबागिरी का धंधा हमेशा चलता रहता है।
इन दिनों टीवी चैनलों, चैक-चैराहों यहां तक की मोबाईल में भी निर्मल बाबा छाये हुए हैं। निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह नरूला के भक्तों की संख्या दिन प्रतिदिन तेजी से बढ़ती जा रही है। इनके भक्तों की टोली में समाज का हर तबका अपनी सुधबुध खोकर शामिल हो रहा है। मंहगे काले रंग के पर्स रखना, ब्रांडेड सामानों का इस्तेमाल करना, मंहगी लिपिस्टिक का प्रयोग, दशवंत निकालना बाबा के आम नुस्खे हैं। जिनका प्रयोग बाबा भक्त करते हैं। निर्मल बाबा की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाबा के द्वारा समागम में तो हजारों की संख्या में लोग भाग लेते तो हैं ही साथी एक बड़ा तबका टीवी के सामने बैठा भी बाबा के कारनामों को देख सुन रहा होता है और जैसा बाबा कहते हैं वैसा करता है। बाबा के भक्तों का मानना है कि ऐसा करने से बाबा बरकत देते हैं। उनके बिगडे काम भी बन जाते हैं। बाबा पर विश्वास करने वाले लोग कहते हैं कि उन्होंने जो भी बाबा से पूरी आस्था और विष्वास के साथ मांगा वो उन्हें मिला। बाबा पर उनका अटूट विष्वास है, बाबा जैसा कहते हैं वो वैसा ही करते हैं।
बात यहीं पर आकर अटक जाती हैं। विश्वास, अटूट विश्वास। मैं कुछ वर्ष पूर्व की एक घटना का उल्लेख करना चाहूँगा, जब गर्मी के महीने में शिवलिंग ने दूध पीना शुरू कर दिया था। हजारों-लाखों की संख्या में लोग शिवलिंग को दूध पिलाने के लिए उमड़ रहे थे। ऐसे में एक मोची ने भी अपने जूते सिलने वाले तिकोने औजार को दूध पिलाकर यह जता दिया कि कण-कण में भगवान है। बस आस्था होनी चाहिए। राॅन्डा बर्न की एक किताब द सीक्रेट में इस बात का जिक्र है कि हमारी जिसपर जितनी आस्था होती है उसी अनुरूप वो हमारी मांगों को पूरा करता है। यही वजह है कि पत्थर की मूरतें भी मन्नतें पूरा करती हैं। निर्मल बाबा भी इसी सिद्धांत को अपना कर अपना धंधा चला रहे हैं। वो लोगों को जो कहते हैं लोगों को उन बातों पर पूरा विश्वास होता है कि उनके ऐसा करने से उनके रूके हुए काम होने लगेंगे। उनकी मन्नतें पूरी होने लगेंगी। और वाकई में ऐसा होता भी है। क्योंकि यह तो प्रकृति का सिद्धांत ही है। अगर आप खुश रहना चाहेंगे तो खुश रहेंगे। बिल्कुल उसी तरह जैसे आप जब तरक्की चाहेंगे तो आपकी जरूर मिलेगी। निर्मल बाबा भी बस यही कर रहे हैं। और इसके एवज में लोगों से मोटी रकम वसूल रहे हैं। यदि वाकई में उनके पास कोई दैवी चमत्कार है तो ऐसे कौन से देवी देवता है जो केवल काॅरपोरेट घरानों के लिए होते हैं। निर्मल बाबा के दर्षन केवल उन्हीं लोगों को हो सकते हैं जो इसके एवज में न्यूनतम 2,000/- (दो हजार रूपये) खर्च कर सकते हैं। बाबा के भक्तों का कहना है कि गरीब टीवी पर बाबा की कृपा पा सकते हैं तो ऐसा लगता है जैसे बाबा के भक्त भी हमारी केन्द्र सरकार की तरह ही उन्हें गरीब नहीं मानती जो रोजाना 32 रूपये कमाते हैं।
खैर, निर्मल बाबा के कार्यक्रमों और हो रही घटनाओं को देखकर तो ऐसा ही लगता है कि निर्मल बाबा के भक्तों का इससे कल्याण हो या न हो लेकिन निर्मल बाबा का कल्याण जरूर हो रहा है।

1 comment:

  1. kamlesh kumar singh23 April 2012 at 04:06

    Baht acchi lekhni aur shabdo ka istemaal, badhiya sirf shabdo ki asuddhiyo ko sudhar kar le

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