Sunday 11 December 2011

ये कैसी आजादी...

इन दिनों भारत के संचार मंत्री कपिल सिब्बल की विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साईट्स के प्रमुखों के साथ बैठक को मीडियाकर्मियों के द्वारा प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से आड़े हाथों लिया जा रहा है। हालांकि किसी भी न्यूज चैनल या समाचार पत्र के द्वारा इसका इतना विरोध नहीं हो रहा है जितना सोषल नेटवर्किंग साईट पर। फेसबुक, ट्विट्र जैसे नेटवर्किंग साईट्स पर अभी यह मुद्दा काफी जोर-शोर से उठाया जा रहा है कि सरकार फिर से आपातकाल की स्थिति लागू करने पर आमादा है। संचार मंत्री के सोशल नेटर्विंग साईट के प्रमुखों के साथ बैठक के बारे में कहा जा रहा है कि वो सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर दबाव बनाकर काँग्रेस और काँग्रेसी नेताओं के विरूद्ध चलाये जा रहे अभियान को रोकने की कोशिश कर रहे हैं। इसी के तहत काॅग्रेस के खिलाफ मौजूद सबसे बड़े पेज/कम्युनिटी ‘‘..... अगेन्टस काँग्रेस’’ को हटा दिया गया है। हालांकि इसके पक्ष में कपिल सिब्बल का कहना है कि ‘साईट पर पोस्ट की जाने वाली सामग्रियों से बहुत से समुदायों की धार्मिक भावना और गणमान्य लोगों के सम्मान को ठेस पहुंच रही है।’ कपिल सिब्बल का यह वक्तव्य कहीं न कहीं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की ओर इशारा कर रही है। और इसी बात को लेकर हाय-तौबा मची हुई है।
हाय तौबा मचाने वाले शायद इस बात को भूल रहे हैं कि वह जिस तरह से काँग्रेस और काँग्रेसियों का विरोध कर रहे हैं क्या वह सही है ? भारत का विदेशों में प्रतिनिधित्व करने वाले मनमोहन सिंह को ‘सोनिया का दमाद’, कपिल सिब्बल को ‘काबिल चप्पल’, दिगविजय को ‘पिगविजय’ कहना कहां तक उचित लगता है। क्या हम अपनी संस्कृति भूल कर नेताओं की परिपाटी पर ही नहीं चल निकले हैं। विरोध करना गलत नहीं है पर क्या विरोध का यह तरीका सही है ? चुनाव के समय जब नेताओं के द्वारा एक दूसरे के लिए इस तरह के शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो उस समय हम इसका विरोध करते हैं, कहते हैं हमारे नेताओं को ये भी पता नहीं होता होता कि किस तरह के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ? और आज हम खुद यही कर रहे हैं और अगर कोई इसे गलत कहता है तो उसके लिए हाय-तौबा मचाने लग जाते हैं ?
हमारे संविधान में अनुच्छेद 19(1) के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गयी है। परंतु यह आजादी अनिर्बन्धित नहीं है। अनुच्छेद 19(2) में यह प्रावधान किया गया है कि विशेष परिस्थितियों मे सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित भी कर सकती है। इन विशेष परिस्थितियों में शिष्टाचार व सदाचार को भी शामिल किया गया है। हम वहीं तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग कर सकते हैं जबतक कि वो शिष्टाचार के दायरे में हो। और अभी विरोध को जो तरीका अपनाया जा रहा है वो कहीं से भी भारतीय शिष्टाचार के दायरे में नहीं आता। अतः सरकार अगर चाहे तो ऐसी आजादी पर पाबंदी लगा सकती है। लेकिन इस निमित्त भी संविधान को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। सरकार अपनी मर्जी से इस तरह के किसी प्रतिबंध को लागू नहीं कर सकती। अनुच्छेद 19(2) में यह भी वर्णित है कि प्रतिबंध केवल कानून बनाकर ही लगाये जा सकते हैं। केवल प्रशासनिक आधार पर अभिव्यक्ति की आजादी को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
एक तरफ से देखा जाए तो सरकार की गतिविधियों पर पर नजर रखना और उसका विरोध करना लोकतंत्र के सफलता के लिए सही है। लेकिन सरकार के हर कदम का, बिना सोचे-विचारे विरोध करना केवल मूर्खता ही कही जा सकती है। किसी भी देश का आत्मसम्मान वहां के नागरिकों को इसकी धज्जियां उड़ाने की अनुमति नहीं दे सकता। ऐसी स्थिति से बचने के लिए चीन और रूस जैसे अनेकों विकसित देषों में कई साइट पर पूर्णतः रोक लगा दी गई है। अतः भारत के सम्मान को बचाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम का पूर्ण रूप से विरोध करना अतार्किक और बचकाना होगा।
फिलहाल सोशल नेटर्किंग साईट्स ने धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले पोस्ट्स पर लगाम लगाने की बात तो स्वीकार ली है पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी से रोकने की केन्द्र सरकार की कोशिश को नकार दिया है।

1 comment:

  1. ise kahte hain sikke ka dono pahlu dekhna. bina soche-samjhe wirodh jatana to netaaon ka kam hai patrakaaron ka nahi. is alekh k liye badhai.

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